आ गले से लगा ले मुझे जिंदगी
फिर से जीना मैं चाहूँ तुझे सौ दफ़ा
आजमाले ख्वाइशें जो बाकी है तेरी
बना लें मुझे हमसफ़र तेरा।
लकीरें ये हातों की चलती ही जाए
सासों को देदे तू एक और वजहः
धड़कने भी ये गाए सरगमे तेरी
आँखे चाहती है छूना हर जमीं-आसमाँ।
भुलाके अतितों के फासले ये सारे
दर पे खड़ा मैं तेरे ना ठुकरा मेरी रजा
तू चलती जा आगे छोड़ कर कुछ लकीरे
चलता रहू बन के मैं साया तेरा ।
आज खुलने दे बाहें आज चलनें दे राहें
दिल करे आज तुझसे भी कर लूँ वफ़ाए
निगाहें ना झुका सुन मेरी दिलरूबा
मुझे खुद में समालें इस जमन एक दफा।
आ गले से लगाले मुझे जिंदगी
फिर से जीना मैं चाहूँ तुझे सौ दफ़ा।
- kashif
{saurav mahajan}
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