जीवन एक रहस्य....

                सालों से चल रही एक दौड़, जिसमे जीत हासिल करना शायद ही किसी के बस की बात हो। अनंत समय से हर पशु प्राणी यहा तक की पेड़ पौधों की यही कोशिश हो रही है,किसी तरह इस भूमि को इस समूचे धरती को अपने अधीन कर पाये। 
                हासिल क्या है ? कभी शांत बैठ के सोच के देखिए, और मैं ये आपसे इसलिए कह रहा हूं क्यों की मुझे ये लगता है या यूं कहिए मैं ये सोच रहा हु की संसार में सोचने की शक्ति सिर्फ मनुष्य को ही हासिल है। हो सकता है वो पेड़ पे बैठा हुआ पक्षी अपने बारे में यही सोचता होगा और मनुष्य को एक प्राणी की भाती देखता होगा। ये कल्पना सत्य हुई तो वो पक्षी हमसे कई सौ गुना उच्च होगा, हम आज तक सिर्फ परमहंस स्तिथि तक ही पोहोच पाने का दावा करते है, वो हमसे भी ऊपर होगा।
                 मनुष्य ने जीवन को अदभुत तरीके से जटिल बना दिया है। बड़ा रहस्यमई खेल चल रहा है आपके आजूबाजू, और शायद आप भी इसका एक हिस्सा है। फर्ज किजिए, आप कपड़े पहनते हो , कभी ये सवाल आया क्यू? परमात्मा ,अगर आप उसपे यकीन करते हो तो, उसने तो कपड़े पहनाकर नही भेजा यहां। फिर ये व्यवस्था किसने की? उसकी व्यवस्था अगर सर्वोच्च है तो किसने की ये जुर्रत उसके व्यवस्था में दखल देने की?ऐसी क्या आन पड़ी की ये कदम उठाना पड़ा। और ये हर दूसरी चीज के बारे में सत्य है। ये एक महाजाल है , जिसमें फसने वाला अगले शिकार का प्रबंध करता है।और जो लोग इसमें नही पड़ना चाहते उनके लिए एक और व्यवस्था यहाँ की है। जिसे समाज कहाँ जाता है।
                 अनंत काल से सिर्फ अन्न, पानी और काम यही इच्छाएं रही है, बस उसे हासिल करने के तरीके बदले है। पहले लड़ झगड़ कर, फिर राज्यों की सीमाएं बढ़ाकर और आज के समय में वित्त और औदा कमाकर। तुम्हारी इच्छाएं कामनाएं बहोत ही तुच्छ मालूम होती है अगर तुम इसे अपनी समस्याओं से जोड़कर देखते हो। तुम किसी दिन अंतिम फल के बारे में सोचना ,क्या कमाना है? क्यूं हो रही है ये पीड़ा ? क्यू इस खेल का हिस्सा हूं मैं?
तुम हस पड़ोगे, या रो पड़ोगे! अपनी मूर्खता पर। 
                 एक सरल मार्ग से समझाता हूं, सुख क्या है? किसी चीज ,इंसान,परिस्थिति या स्वयं पर खुद का अधिकार मान लेना। बस यहीं है सुख तुम हजार उदाहरण जोड़ के देख लो कुछ अलग नही मिलेगा। तुम कहोगे मैने किसी को दान दिया मान लो रोटी देदी वो भी पशु को और मुझे सुख प्राप्त हुआ, असल में ये बस तुम्हारी समझ है की तुमने उसकी भूख हर ली , तुमने किया या तुम कर सके ,तुम्हारे अधिकार में थी ये चीज।
                  दुख क्या है? सत्य परिस्थिति की अनुभूति, बुद्ध में कहां इच्छा, रोग और मृत्यु ये दुख के कारक है, मैं बस इतना कहता हु की जो अनुभूति सुख देता है उसका सत्य स्वरूप सामने आना ही दुख है। जब तुम्हें पता चलेगा की जिस पशु तुमने रोटी दी वो फिर शाम को भूक से तड़प उठेगा और इधर उधर भटकेगा, हो गया दुख। तुम्हारे शक्ति की पहचान यही हो गई।
                  मुक्ति क्या है? संपूर्ण सत्य को समझकर उसे मान लेना और इस समूचे ब्रम्हांड में हम बिंदु बराबर भी नहीं है न ही हम कुछ कर सकते है ये मान कर इसका स्वीकार कर के सब कुछ काल के हाथ सौप देना, न तुम्हारा कुछ है, न तुमने कुछ किया है न कभी कर सकोगे इसलिए निष्फल प्रयास छोड़कर, जीवन का आनंद जैसे हर पल अंतिम हो इस तरह जीना ही मुक्ति है। मुझे लगता है हिंदू धर्म इस बात को बेहेतर समझ पाया है,इसलिए जहा बाकी धर्मो में स्वर्ग, हेवन या जन्नत तक ही सबसे उच्च स्तर बताया गया वही यहां आत्मज्ञान या मुक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना गया।
                  मैंने जब मुक्ति की बात की तब नाम स्मरण या कुछ अपने इष्ट(god) से जुड़ने की बाते सामने आयी, मैं इसका कड़ा आलोचक हूं। अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो किसी की राह देखो, किसी को याद करो ,किसी का नाम रटो, पर यहां बात संपूर्ण त्याग की हो रही है, अगर तुम्हें कुछ नही चाहिए तो जो है उसे वही छोड़ दो और आगे बढ़ जाओ किसकी राह देख रहे हो। कोई तुमसे लेने नही आएगा और आएगा तो तुम दे भी नही सकोगे, इसीलिए छोड़ कर मुक्त हो जाओ ,यही रहस्य है जीवन का।

_सौरव महाजन 

Comments

Post a Comment