मौत का मौसम!!!



ना इन हवाओं में ज़हर घुलता था
ना ही शमशानों पर लाशों का मेला लगता था,
कुछ गलतियाँ जरूर की है इन सत्ता के आक़ाओं ने
वरना वतन मेरा आज भी आबाद रहता था।
-सौरव महाजन
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