यार अब लौट चलें..!!!

लौट चले...!

बहोत याद आ रही है वो मासूम शामें
मेरे घर रोज आते है उजले सवेरे,
छूट गए सब दोस्त यार सारे, रह गये पीछे सब रिश्ते हमारे।
किस जन्नत की खातिर हम मरे जा रहे है,
जख्म मासूम दिल पे मिले जा रहे है
रुक जाओ थोड़ा अब इन्हें भी तो सिले,
चलो अब वापिस घर लौट चलें।

दिन रात यहाँ रोज कुर्बानियाँ जीतनी
मत करो अब दिल की नादानियाँ इतनी
तुम ही बताओ जिंदगी है भी कितनी
जीना भी है हमें, नहीं इन जंगो की कीमतें उतनी
बहोत लढ़ लिये अब, जरा आराम लेले
चलो अब वापिस घर लौट चलें।

पता है किस्मतों ने बगावतें की है
चाँद तारों से ही तूने मोहब्बतें की है
जिंदगी जीनें को मिली है मुसाफिर,
बता किस काम पर तुनें गुजारी है
चाहा जो सबकुच हासिल हो जरूरी नही है
जो मिला वो बहोत है, ये दिल को समझालें
चलो अब वापिस घर लौट चलें।

वो आँगन की कलियाँ तेरे शहर की गलियाँ
वो गांव की मिट्टी साथ मे एक चिट्ठी
एक बेचारी लड़की आज फिर बुला रही है
खो गए हम किस देस में आकर
याद उनकीं हर पल सता रहीं है
बहोत सताया अपनोंको, अब कुच रूठें है उन्हें भी मनालें
चलो अब वापिस घर लौट चलें।

-saurav mahajan
Contact:8378862867

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